महाराजश्री

शास्त्र वासना अथवा ज्ञान वासना भी पूर्ण होकर ‘मैं’ को सुखी नहीं बना सकती | वे निवृत्त होकर ही ‘मैं’ के सहज ज्ञान को निरावरण होने का अवसर देती है |